उनका जन्म कर्नाटक के बागलकोट जिले में स्वर्गीय श्री विरूपाक्षप्पा और श्रीमती नीलम्मा अंगड़ी के यहाँ हुआ था। बचपन से ही वे हमेशा प्रेरित थे और देश के लिए कुछ करना चाहते थे और अपने जीवन को सार्थक बनाना चाहते थे।
बचपन में, गुरुजी के कॉलनी में एक मंदिर था। मंदिर के कामों को पूरा करने के लिए, कॉलनी के सभी घरों से चंदा इकट्ठा करना आवश्यक था। उनकी कॉलनी में लगभग 50 से 60 घर थे। उनकी कॉलनी के घरों से चंदा इकट्ठा करने के लिए कोई भी तैयार नहीं था क्योंकि सब इसे एक छोटा काम मानते थे। फिर गुरुजी आगे आए और अपने करीबी दोस्त के साथ मिलकर उन्होंने यह जिम्मेदारी ली। स्कूल के बाद हर दिन, वह हर घर जाकर चंदा इकट्ठा करते थे, और इससे काफी हद तक मंदिर के लिए फंड एकत्र करने में मदद मिली।
देश के लिए अपना जीवन समर्पित करने के लिए एक जोश और जुनून के साथ, मानव गुरु इस दुविधा में थे कि उन्हें अपने देश की सेवा करने के लिए किस रास्ते को अपनाना चाहिए।
अपने माध्यमिक शिक्षा के बाद, वह सेना में भर्ती होने की प्रक्रिया में जुड़ गए मगर शारीरिक परीक्षा के दौरान रिजेक्ट होने पर उन्हें बड़ा झटका लगा। उन्हें इसलिए नहीं चुना गया क्योंकि, उनका वजन कम था। वह बहुत नाराज़ हो गए। वह सोचते रहते थे कि “जब मैं देश के लिए अपना जीवन समर्पित करने के लिए उत्सुक हूँ तो मुझे क्यों नहीं चुना गया?”
रिजेक्ट होने पर भी वह अपने लक्ष्य से अलग नहीं हुए और वह दृढ़ संकल्प और लगन के साथ अपने जीवन में आगे बढ़े। उन्होंने अपनी शिक्षा जारी रखी और कर्नाटक के बागलकोट जिले से सिविल इंजीनियरिंग में स्नातक पदवी की पढ़ाई पूरी की। अपने शिक्षकों के प्रति उनके मन में हमेशा कृतज्ञता का भाव रहता था, जिन्होंने उन्हें अपने शिक्षा काल में मार्गदर्शन किया।